FB 3947 – नंबरिंग थोड़ी सी ग़लत हो गई थी, अब ठीक कर दिया ।
नंबर सही होना चाहिए !
BLOG पर, Twitter पर, और यहाँ
अंत का नंबर same होना चाहिए , एक जैसा होना चाहिए !
और यहाँ जो वहाँ छापा था, यहाँ छाप रहे हैं :
– अब ठीक हुआ, ५०२७ , और मन हुआ कि पूज्य बाबूजी की एक कविता के कुछ शब्द लिख दूँ ।
ये ‘बुध और नाचघर ‘ कविता के कुछ शब्द हैं –
“जीवन है एक चुभा हुआ तीर – सिद्ध करने की ज़रूरत है ?
पीर ! पीर ! पीर !!”
HRB
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