T 4163 –
“भावुकता अंगूर लता से
खींच कल्पना की हाला,
कवि साक़ी बनकर आया है
भरकर कविता का प्याला ;
कभी ना कण-भर ख़ाली होगा
लाख पिएँ, दो लाख पिएँ !
पाठक गण हैं पीने वाले,
पुस्तक मेरी मधुशाला ”
~ हरिवंश राय बच्चन
T 4163 –
“भावुकता अंगूर लता से
खींच कल्पना की हाला,
कवि साक़ी बनकर आया है
भरकर कविता का प्याला ;
कभी ना कण-भर ख़ाली होगा
लाख पिएँ, दो लाख पिएँ !
पाठक गण हैं पीने वाले,
पुस्तक मेरी मधुशाला ”
~ हरिवंश राय बच्चन